हर रोज़ नज़ारा लगता है
हर शाम किनारा सजता है
कोई प्यार का मारा रोता है
कोई पेट से भूखा हंसता है
वो जेब से खाली है लेकिन
वो दिल का मालिक है लेकिन
पर इससे भी क्या होता है
हर रात वो भूखा सोता है
क्यूं नफ़रत से बर्बाद रहें
चलो प्यार से दिल आबाद करें
हर बंदिश से आज़ाद करें
इस दुनिया को शादाब* करें * हरा-भरा
ये आग भड़क भी सकती है
ये शोला भी बन सकती है
तू एक ज़रा हुंकार तो भर
कोई आंधी भी चल सकती है
हर शाम किनारा सजता है
कोई प्यार का मारा रोता है
कोई पेट से भूखा हंसता है
वो जेब से खाली है लेकिन
वो दिल का मालिक है लेकिन
पर इससे भी क्या होता है
हर रात वो भूखा सोता है
क्यूं नफ़रत से बर्बाद रहें
चलो प्यार से दिल आबाद करें
हर बंदिश से आज़ाद करें
इस दुनिया को शादाब* करें * हरा-भरा
ये आग भड़क भी सकती है
ये शोला भी बन सकती है
तू एक ज़रा हुंकार तो भर
कोई आंधी भी चल सकती है
कैसे हो, क्यों हो भूलो तुम
हर मुश्क़िल का हल ढूंढों तुम
जो रस्ते में थक जाएगा
तो कैसे मंज़िल पाएगा
अब तो दिल से तूफ़ान उठे
और भीतर का भगवान उठे
ये दुनिया संभल भी सकती है
जो तुझमे छिपा इंसान उठे....
- पुनीत भारद्वाज