तुम्हारे खुदा की हम करें आरती
हमारे खुदा की तुम आयते गाओ
बहुत फ़ासला है, अब ये फ़ैसला लो
थोड़ा हम पास आएं, थोड़ा तुम पास आओ
क्यों हैं बिखरे-बिखरे, आओ खुद को समेटें
सरहदें जो दिल में, वो सरहदें मिटाओ
माना मुश्किल भुलाना, वो बीता ज़माना
अब कुछ हम भुलाएं और कुछ तुम भुलाओ
ना अल्हा क़सम लो, ना राम की क़समें
प्रीत की अब नई क़समें तो खाओ
- पुनीत बालाजी भारद्वाज