क्षितिज...

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थमा हूं पर मैं थका नहीं हूं...


Posted by Puneet Bhardwaj at गुरुवार, अप्रैल 04, 2013 1 टिप्पणी:
Labels: ग़ौर फ़रमाए

रोटी के रूप से फीके ये तेरे अदा-हुस्न के जलवे हैं...


Posted by Puneet Bhardwaj at मंगलवार, अप्रैल 02, 2013 1 टिप्पणी:
Labels: ग़ौर फ़रमाए
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क्षितिज

कितनी भागम-भाग है यहां,
नफ़रतों से ना जाने
कितने दिल चाक (ज़ख़्मी) हैं यहां,
सबको अपनी ही फ़िक्र है;
किसको किसकी क़द्र है.
जब हम इंसानों की ज़िंदगी
यहां कुछ ऐसे चलती है..
ऐसे में दूर कहीं इक क्षितिज पर
दुनिया से बेख़बर ये ज़मीन
फ़ुर्सत में आसमां से गले मिलती है......





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  • बेशक हो गया शाह वो, मैं अलमस्त फ़क़ीर... उसके पास कुबेर है, मेरे पास कबीर....
    Manish Awasthi
    12 वर्ष पहले

पुनीत बालाजी भारद्वाज

पुनीत बालाजी भारद्वाज
मैं जब चलता हूं तो इक समां चलता है, मेरे संग लफ़्ज़ों का कारवां चलता है......

तुषार उप्रेती

तुषार उप्रेती
पृथ्वी गोल है औऱ मीडिया एक गोलचक्कर । इसलिए मैं भी गोल मटोल हूं। मेरे पास शाहरुख की तरह 6pacs abs नहीं है लेकिन एब ही एब से भरा हुआ हूं।

दीपक शर्मा

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क्षितिज...

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