ख़ून में हरारत, जिस्म में जान बाकी है
चंद लाल क़तरों में अभी कितने तूफ़ान बाकी है...
हर हद तक करले ऐ वक़्त तू जितना भी सितम
हौसला अभी ज़िंदा है, अभी ख़ून भी है गरम
ऐ मौत ठहर थोड़ा इंतज़ार करले
अभी तो ज़िंदगी में बहुत काम बाकी है....
- पुनीत भारद्वाज
वो ममता की मूरत है,
तो कभी एक लाडली बेटी...
एक आदर्श बहू होने के साथ,
वो बंधी है राखी की डोर से...
कभी वो कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ती है,
तो कभी उस अबला को रहना पड़ता है दहलीज़ की मर्यादाओं में...
नारी की शक्ति पर टिका है सारा जहान
नारी के इन सब रूपों को हमारा सलाम
- पुनीत भारद्वाज