इक पगली लड़की के बिन...




















इक पगली लड़की के बिन*
कैसे काटूं अपने दिन
लंबी हो गई सारी रातें
बोलो कैसे इनको काटें
करते हैं कभी ख़ुद से बातें
और कभी तारें गिन-गिन..

इक पगली लड़की के बिन
कैसे काटूं अपने दिन....

सूरज-चंदा आएं-जाएं
तकते हैं सब तेरी राहें
इस उम्मीद में के तू आ जाए
बोलो भला हम क्या बतलाएं
पूछे जो मेरे पलछिन........

इक पगली लड़की के बिन
कैसे काटूं अपने दिन....

- पुनीत भारद्वाज
*ये लाइन कुमार विश्वास की कविता की एक लाइन से प्रेरित है

तू बस नज़र के सामने रहे...



















जब भी आंखें खोलूं तुझे देखूं
सोते-जागते तुझे ही सोचूं..
अब ना हम ये दूरियों का ग़म सहें
तू बस नज़र के सामने रहे....

दिन-रात बस एक ही काम हो
चाहे सुबह, चाहे शाम हो
भले चैन ना, आराम हो
लबों पे बस तेरा नाम हो
ज़ुबां खोलूं... तो खुशबू बहे...
तू बस नज़र के सामने रहे....

जब भी कोई आहट हो.. तो तेरी हो
हंसी हो, खिलाखिलाहट हो.. बस तेरी हो
हर लम्हा तेरी आरज़ू में कटे,
और भी कोई चाहत हो.. तो बस तेरी हो...
इससे ज्यादा ना कुछ दिल मांगे
इससे आगे ना कुछ लब कहे.....
तू बस नज़र के सामने रहे....

- पुनीत भारद्वाज