तू बस नज़र के सामने रहे...



















जब भी आंखें खोलूं तुझे देखूं
सोते-जागते तुझे ही सोचूं..
अब ना हम ये दूरियों का ग़म सहें
तू बस नज़र के सामने रहे....

दिन-रात बस एक ही काम हो
चाहे सुबह, चाहे शाम हो
भले चैन ना, आराम हो
लबों पे बस तेरा नाम हो
ज़ुबां खोलूं... तो खुशबू बहे...
तू बस नज़र के सामने रहे....

जब भी कोई आहट हो.. तो तेरी हो
हंसी हो, खिलाखिलाहट हो.. बस तेरी हो
हर लम्हा तेरी आरज़ू में कटे,
और भी कोई चाहत हो.. तो बस तेरी हो...
इससे ज्यादा ना कुछ दिल मांगे
इससे आगे ना कुछ लब कहे.....
तू बस नज़र के सामने रहे....

- पुनीत भारद्वाज

3 टिप्‍पणियां:

हरिता कथूरिया ने कहा…

Wah! Kya baat h..beautiful feelings expressed in beautiful words.

Rama Kataria ने कहा…

it's fabulous Puneet,
jo bhi padhega bas yahi sochega ki usi ke dil se nikli hai,
kaise tum aisi poems likh lete ho, padhne wala sunne wala har insaan jud jata hai....
dekho na feelings sabki common par shabdo me bas tum hi bayan kar sakte ho !!!!!!

Gunjan ने कहा…

Rekha is right...its really so romantic... mai padte-padte kho gyi thi kahin.. I loved it. -Gunjan