'SAVE ME', 'SAVE MAA'
सदियों से जो बोझ सहती रही हमारा, आओ हम भी बनें इसका सहारा... |
इसको मां कहते हम
जिस धरती पर रहते हम
पेड़-पौधे...जिसका श्रृंगार
आज उस पर होता अत्याचार
ना कुचलो मां के आंचल को
ना काटो घने इस जंगल को
इस दर्द का बोझ सहती है मां
'मुझे बचाओ...', कहती मां
धरती मां की लाज बचाओ
धरती मां को आज बचाओ
- पुनीत बालाजी भारद्वाज
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