अलग-अलग लोगों से, अलग-अलग विचारों से
अपना तो देश चलता है चमत्कारों से
वादों से, दावों से और नारों से
ऊंट करवट बदलता है जनपथ के इशारों से
जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा
किसे मतलब है तथाकथित सरोकारों से
हर रोज़ लुटती है इक नई दामिनी
हर रोज़ टपकता है खून इन अख़बारों से
किस मज़हब की जान जली थी दंगों में
मांगो तो ग़वाही चारदीवारों से
हमने तो पाई थी आज़ादी सन 47 में
कहां खो गई, पूछो तो ज़िम्मेवारों से
-पुनीत बालाजी भारद्वाज