मेरा ख़्याल मेरे बारे में...

खुली क़िताब हूं पढ़ले कोई,
करले तर्ज़ुमा कैसा भी
जो समझ नहीं आया

तो कभी तो आउंगा,
और जो इक बार आ गया

तो ज़हनो-ओ-दिल पे छा जाऊंगा....


- पुनीत भारद्वाज

3 टिप्‍पणियां:

anuradha verma ने कहा…

पुनीत जी आप क्या खूब लिखते हैं। दिल खुश हो गया आपकी प्रतियां पढ़कर। अब कहां शब्दों में गहराई देखने को मिलती है। आने वाले समय में आप घने बादलों को चीरकर निकलने वाली वो आशा की किरण साबित होंगे, जिसे अपनी पहचान बनाने में थोड़ा वक्त तो लगता है लेकिन उजागर होने पर वो सूरज की रोशनी को भी धूमिल करने की ताकत रखती है।

बेनामी ने कहा…

i don't know what 2 say abt these 4 lines which r masterpiece among themselves.
jst want 2 say dat- hum shayad tumhe samajh chuke hain.

बेनामी ने कहा…

i completely agree vd anuradha.
gr8 poetry.