एक रिश्ता....

क्या अजब है ये सिलसिला...
ना देखा तुम्हे, ना तुमसे कभी मिला..
ना जाने इस रिश्ते को क्या नाम देते हैं..
यार मुझको सभी पागल कहते हैं..

सोचता हूं तेरे दामन को छोड़ दूं कभी..
इस बेनाम से रिश्ते को तोड़ दूं कभी..
जाने किस दुनिया में हम दो रहते हैं..
यार मुझको सभी पागल कहते हैं...
- पुनीत भारद्वाज

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

jo rishte bina kisi ka nuksan kie tumhe khushi dete h unhe q todo?
poem bahut pyari h!!