अपना तो देश चलता है चमत्कारों से


अलग-अलग लोगों सेअलग-अलग विचारों से
अपना तो देश चलता है चमत्कारों से 

वादों सेदावों से और नारों से 
ऊंट करवट बदलता है जनपथ के इशारों से

जनता काजनता के लिएजनता के द्वारा
किसे मतलब है तथाकथित सरोकारों से

हर रोज़ लुटती है इक नई दामिनी
हर रोज़ टपकता है खून इन अख़बारों से

किस मज़हब की जान जली थी दंगों में 
मांगो तो ग़वाही चारदीवारों से 

हमने तो पाई थी आज़ादी सन 47 में
कहां खो गईपूछो तो ज़िम्मेवारों से 

-पुनीत बालाजी भारद्वाज



1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

किस ख़ूबसूरती से देश की ख़स्ताहाल हालत को तुमने अपनी व्यंग्यात्मक कविता के ज़रिये व्यक्त किया है।
बहुत खूब पुनीत !! कितने समय बाद तुम्हारा लिखा कुछ पढ़ा आज। बस यूँ ही लिखते रहना तुम। दिन- ब -दिन और अच्छा।