अमिताभ होने का मतलब!


अमिताभ बच्चन...इंडस्ट्री का वो नाम जो अब किसी अल्फाज़ का मोहताज़ नहीं....
अमिताभ बच्चन...इंडस्ट्री का वो कलाकार जिसे लोग अपने आप में अभिनय का स्कूल मानते हों...
अमिताभ बच्चन...जिसके नाम का मतलब ही एक ऐसी रोशनी है जो कभी बुझती नहीं....
आज उसी अमिताभ का जन्मदिन है जिसने कभी एंग्री यंग मैन बनकर हम सबकी भड़ास को पर्दे पर जिया...कभी कुली बनकर ज़माने का बोझ उठाया...तो कभी विजय बनकर अपने बचपन का बदला लिया..वही अमिताभ जिसके साथ हमने सिनेमा और समाज को बदलते देखा...आज 66 साल का हो गया है...आंखों मे जिसकी 40 साल का अनुभव छिपा है...जिसकी आवाज़ में ही उसकी पहचान है...आज उसी अमिताभ का जन्मदिन है.....
11 अक्टूबर 1942 को जन्मा ये शख्स एक दिन एक्टर ऑफ द मिलेनियम कहलाएगा..ये किसी ने सोचा भी न था...हांलाकि 1969 में आई अपनी पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी में बेस्ट न्यूकमर के नेशनल अवार्ड के बावजूद अमिताभ को कामयाबी के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा...1971 में आई आनंद ने उन्हें बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर का फिल्म फेयर अवार्ड तो दिलाया लेकिन सोलो एक्टर के रुप में स्थापित होने में अमिताभ को इसके बावजूद लंबा वक्त लगा...और इस बीच अमिताभ ने बॉम्बे टू गोवा....परवाना..रेशमा और शेरा..गुड्डी जैसी फिल्मो मे काम किया...लेकिन 1973 में प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी झंझीर अमिताभ को एंग्री यंग मैन का वो खिताब दिलाया...जिसके पास पहुंचने का सपना हर कलाकार देखता है...
इस फिल्म में अमिताभ की संवाद अदायगी लोगों के दिलो-दिमाग पर हावी हो गई...
हांलाकि इसके बाद मजबूर...रोटी कपड़ा और मकान...फरार औऱ चुपके-चुपके जैसी अमिताभ की कई फिल्में रिलीज़ हुई लेकिन पब्लिक के दिल में अमिताभ की जो इमेज़ थी उसे भुनाया 1975 में आई य़शचोपडा़ की दीवार ने...जिसमें हालात के मारे एक शख्स के फर्श से अर्श तक के सफर को अमिताभ ने बखूबी जिया है...
और इसके बाद 1975 में ही आई शोले...जिसने अमिताभ को दिया वो मकाम जिसे छूने का हौंसला अच्छे अच्छों मे नहीं है...जय जो पूरी फिल्म में लगभग खामोश सा रहता है..आखिरी में वो जब अपने दोस्त की खातिर मरता है तो इस सीन को देखने वालों की पल्कें भीगे बिना नहीं रहती..
लेकिन अमिताभ में इस संजीदगी के अलावा एक रुमानीपन भी था जो कभी कभी..से लेकर सिलसिला तक के अपने फिल्मी पड़ावों मे उन्होंने दिखाया है...तो वहीं दूसरी तरफ अपनी निजी जिंदगी में उन्होंने 1973 में जया भादुड़ी से शादी के बाद भी रेखा से अपने प्यार का सिलसिला जारी रखा था....
वैसे हर किरदार के साथ अमिताभ ने खुद को तलाशा है..उन्होंने कभी डॉन बनकर सबको ये जतलाया कि वो छोरा गंगा किनारे वाला कहलाना पसंद करेंगे तो कभी एंथनी बनकर
आइने के सामने खुद की मर्हम-पट्टी कर डाली..
दरअसल अमिताभ की शख्सियत में जो कुछ भी था उसे उन्होंने अपने अलग-अलग रोल में उडेल दिया है...इसलिए शायद पब्लिक उन्हें ढ़ेरों नामों से जानती है कोई उन्हें विजय कहता है तो किसी के लिए वो एंथनी है..कोई उन्हें डॉन बुलाता है तो किसी के लिए वो शहंशाह...
जब एक शख्स के इतने अक्स सामने आयें तो दिल ये मानने से इनकार कर देता है कि ये महज़ कोई आदमी है....और कुली की शूटिंग के दौरान चोट लगने पर जितने हाथ अमिताभ के लिए दुआ करने के लिए उठे उससे कम से कम ये तो काफी पहले साबित हो गया था कि अमिताभ होने का मतलब अपने आप में सिनेमा की आधी सदी होना है...
बॉलीवुड को एक्टिंग की नई परिभाषा देने वाले अमिताभ को वैसे राजनीति कभी रास नहीं आई...1984 में अपने दोस्त राजीव गांधी के न्यौते पर उन्होंने इलेक्शन लड़ा भी और जीता भी लेकिन जल्द ही बोफोर्स घोटाले में नाम आने और तमाम राजनीतिक फज़ीहतों के बाद अमिताभ ने राजनीति से तौबा करना ही बेहतर समझा...हांलाकि कि इसके बाद हम और अग्निपथ की कामयाबी से अमिताभ ने अपनी ज़ोर दार वापसी दर्ज कराई....जिसमें अग्निपथ के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर के नेशनल फिल्म अवार्ड से भी नवाज़ा गया..पर जल्द ही इंसानियत और खुदा गवाह जैसी फिल्मों के failure से सबको लगने लगा कि ये सितारा अब जल्द ही अस्त हो जाएगा....
इस बीच एबीसीएल कंपनी के निर्माण और उससे हुए करोड़ों के घाटे से अमिताभ के सामने सुपरस्टार बनने के बाद पहली बार FINANCIAL क्राइसिस खड़ा हो गया.....लेकिन टीवी पर कौन बनेगा करोडपति ने अमिताभ को जल्द ही टीवी का शहंशाह बनाकर उन्हें इस स्थिति से भी उबार लिया....हाल के कुछ सालों में मोहब्बतें...एक रास्ता द बॉड ऑप लव...कभी खुशी कभी गम..बागबान..खाकी..ब्लैक..बंटी और बबली..सरकार...और द लास्ट लियर जैसी फिल्मों में काम करके अमिताभ ने ये साबित कर दिया कि उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका कोई जवाब नहीं.........

आज भले ही अमिताभ जवान न हों पर आज भी जब किसी गांव मे अमिताभ की कोई फिल्म चलती है,तो गांव का नौजवान एक बूढ़े़ की बगल से चींखता है कि मार अमिताभ..साले को और मार...ये अमिताभ की उस शख्सियत का महज़ एक टुकड़ा है जिसे लोग जानते हैं...असल में अमिताभ बच्चन होने का मतलब जानने के लिए एक उम्र कम पड़ सकती है....




तुषार उप्रेती

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