फैशन का पैशन!



मधुर भंडारकर ने अपनी फिल्मों मे कहानी कहने का एक नया तरीका इजाद किया है....एक जमे जमाये माहौल में एक नये किरदार को फीट कर दीजिए...कहानी अपने आप आगे बढ़ जाएगी....चांदनी बार के माहौल में तब्बू को फीट किया गया...सत्ता के माहौल में रवीना टंडन को फीट किया... पेज थ्री के माहौल में कोंकणा को फीट किया गया...कॉरपोरेट के माहौल में बिपाशा को फीट किया गया.....सिर्फ ट्रैफिक सिग्नल ऐसी फिल्म थी जिसमें सब कुछ पहले से तय था....और अब फैशन के माहौल में प्रियंका चोपड़ा को फिट किया गया...इन सारी फिल्मों मे नए किरदार के पुराने माहौल में फिट होने के बाद क्या क्या घटनाएं घटती हैं..इसी को मधुर भंडारकर अपनी फिल्मों मे आगे बढा़ते हैं...यहां गौर करने की बात ये भी है कि मधुर की फिल्मों मे सेट्रैंल कैरेक्टर ज्यादातर महिलाएं ही होती हैं...जो कहीं न कहीं..कभी न कभी...शोषण का शिकार होती हैं...
अब बात करते हैं फैशन की...मधुर का रिसर्च तगड़ा है...लेकिन रिसर्च जब ज्यादा पक्का हो जाता है तो निर्देशक के सामने ये समस्या खड़ी हो जाती है कि क्या फिल्म में हो और क्या नहीं...फैशन की स्क्रिप्ट अच्छी है..लेकिन लंबी है.....
इसे मधुर की काबिलियत ही कहेंगे कि सारे किरदारों से उन्होंने काम ले लिया है..चाहे रोल छोटा हो या फिर लंबा...हर कोई फिल्म में सही जगह आता है और चला जाता है....तकनीकी तौर पर मधुर भंडारकर की ये सबसे पक्की फिल्म है...शाट्स सलेक्शन अच्छा है...बैकग्राउंड म्यूजिक में सलीम सुलेमान ने चक-दे वाली थीम को पकड़े रखा है...जहां तक एक्टिंग का सवाल है कंगना राणौत ने बाज़ी मारी है...उन पर तो वैसे भी गैंगस्टर और वो लम्हे करने के बाद बेवड़ी होने की जैसे छाप सी लग गई है...प्रियंका चोपड़ा का काम साधारण है जबकि कहानी उनके इर्द-गिर्द ही बुनी गई है...
हालाकि सारी फिल्म देखने के बाद एक भी ऐसा किरदार नहीं है..जो आपको याद रह जाये....फिल्हाल इतना ही कहेंगे कि फैशन में मधुर का पैशन तो दिखता ही है....


तुषार उप्रेती

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