जीया भी गावै मेघ मल्हार



मोर म्चावै बागां मै शोर
गरजे-बरसे बदरा घणघोर....

धरा की देह पर रंग हैं झलके
पहन लहरिया...जोबण छलके...

छम-छम...छमके.... बरखा बहार
जीया भी गावै मेघ मल्हार.....

- पुनीत बालाजी भारद्वाज

अब तो सावन ऐसा आए..
















सावन की पहली बूंदों में
दिल्ली सारी धुल गई है
बस दिलों में मैल बाकी है
कम्बख़्त बारिश ये क्यों भूल गई है



















अब तो सावन ऐसा आए
जो दिलों की गर्द को धोके जाए

हर शाख़-शग़ूफ़ा यूं खिल जाए
के रोता चेहरा भी मुस्काए...




























अब तो सावन ऐसा आए
के रंज दिलों में रह न पाए

हर सूखा दरिया फिर भर जाए
और कोई न प्यासा कहलाए

अब तो सावन ऐसा आए......

मन तरसे जो बरखा बरसे ...













मन तरसे जो बरखा बरसे,
मोरे पिया अब निकलो घर से.....

















दिल तन्हा-तन्हा रूठ रहा है,
धीमे-धीमे टूट रहा है..
जाने क्या पीछे छूट रहा है,
छूना ना, बस एक झलक दे
असर आएगा तेरी नज़र से..
मोरे पिया अब निकलो घर से.......
















बूंद-बूंद पर चलके आना
या बूंद-बूंद में ढलके आना
आकर मेरी प्यास बुझाना
अब आ भी जा ओ बरखा रानी
उतर भी आओ ना अंबर से...
मोरे पिया अब निकलो घर से........
- पुनीत भारद्वाज


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