मित्र-मंडली


तुषार, पुनीत, प्रशांत और दीपक


ना शहर की भीड़ में दिल लगता है
ना तन्हाईयों की गहराई में
ना किसी की याद में दिल खोता है
ना किसी की अंगडाई में
अपना दिल तो तब लगता है
जब अपने यार अपने साथ हों
अपना दिल तो तब जवां होता है
जब हाथों में यारों का हाथ हो..

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

dosto ki dosti....
kya koi shabd naap sakte h inki gehraiyon ko....
is khoobsurat rishte ko utni hi khoobsurti se bayaan karti ek bahut hi khoobsurat kavita.