तारे ज़मीन पर....tare zameen per







मां-बाप ज़रा गौर फरमायें...क्या वो अपने बच्चों को पाल रहे हैं? या फिर अपने सपनों को...
बचपन उस महीन रेशे की तरह होता है जो अगर धीरे धीरे खुले तो जिंदगीभर ओढ़ने को चादर बन सकती है और अगर उसे छींचा जाये तो वो टूटकर बिखर जाता है।
कुछ ऐसे ही अंदाज़ मे तारे ज़मीन पर की कहानी को फिल्म के कैनवस पर उतारा गया है। कैनवस इसलिए की उसमें एक मासूम बच्चे का बचपन है, जो अपने आसपास के माहौल से, प्रकृति की चित्रकारी से जिंदगी से सबक सीखना चाहता है। उसे एक मेहनत-कश मजदूर के हाथों दिवार को पेंट होते देखना पसंद है, उसे मछलियां पकड़ना पसंद है, उसे पतंग लूटने में मज़ा आता है, उसे स्कूल बंक करना अच्छा लगता है...यानि वो सबकुछ उसे अच्छा लगता है जो उसके नार्मल होने की निशानी है। लेकिन उसके मां-बाप की समस्या है कि उन्हें घर में एक चैंपियन चाहिए जो अंड़े-बॉनविटा के दम पर आकाश की ऊंचाई नाप ले....जैसा कि गाने से स्पष्ट है......
ये टॉनिक सारे पीते हैं
ये ऑमलट पर ही जीते हैं
दुनिया का नारा जमे रहो....

सिर्फ इतना कहना काफी होगा कि तीसरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे के कंधों पर जब महत्वकांक्षाओं का बोझ लादा जाता है तो उसका बचपन टूटकर बिखरने लगता है.......
इशान अवस्थी के रोल में दर्शिल सफारी और उसकी मां के रुप में तिस्का चोपड़ा का काम लाजवाब है। ऐसा लगता है मां सबकुछ समझते हुए बच्चे के मुंह से लॉलिपोप छीन रही है....उसे चैंपियन बनाने के चक्कर में उसे कमतर इंसान बना रही है। जो उसकी आंख से संवेदना के आंसू सूखा रही है।
बेहतर फिल्मों की एक खासियत होती है कि उसमें खामोशी भी आपको बोर नहीं करती बल्कि उसका भी दर्शक से एक रिश्ता बन जाता है। आमिर खान की ये कोशिश उनके भीतर छूपे कलाकार की इमानदारी है। कई दृश्यों मे बूढ़े लगते हैं फिर भी फिल्म काफी कुछ समझाती है। खासकर अपने संगीत औऱ गीतों के माध्यम से...शंकर-एहसान-लॉय उस्ताद हो गये हैं तो प्रसून जोशी शब्दों से झनकार बिखेरना जानते हैं। जो लोग कहते हैं कि कैमरा झूठ बोलता है उन्हें अमोल गुप्ते (क्रियेटिव डॉयरेक्टर) की तारे ज़मीन पर किये गए रिसर्च पर ध्यान देना चाहिए...कैमरा झूठ नहीं बोलता बल्कि हम उसे सच नहीं बोलने देते। जिंदगी के कई सत्यों मे से एक सच ये भी है कि बचपन फिर नहीं लौटता....वो बहती नदी की तरह है,उसे रोकेंगे तो वो गंदा होगा औऱ वक्त से पहले अपनी मौत मरेगा...शायद किसी ने ठीक कहा है.....

कोई स्कूल की घंटी तो बजा दे , ये बच्चा अब मुस्कराना चाहता है........


तुषार उप्रेती

कोई टिप्पणी नहीं: