धमाके के बाद ...









ये साल भी कुछ यूं गुजर गया


जैसे बांझ हो गई धरती के


ऊपर से गुजर जाते हैं- बादल ।




हंसते हुए उसकी विवशता पर.....
ये साल भी कुछ यूं गुजर गया


जैसे गुजरती हैं ट्रेंने बदहाल गांव के


प्लेटफार्म से हंसते हुए उन


अनाथ से खड़े मुसाफिरों पर.....



ये साल भी कुछ यूं गुजर गया


जैसे गुजरते हैं पक्षी,हर शाम हमारे


बंद मकानों के ऊपर से हंसते हुए


हमारी उन कैद कर ली गई आकांक्षाओँ पर.....



ये साल भी कुछ यूं गुजर गया


जैसे गुजर जाते हैं गाड़ीवान वैश्याओं की गली से...


हंसते हुए उनकी उन प्रताड़नाओं पर...



ये साल भी कुछ यूं गुजर गया


जैसे गुजर गये थे पप्पू,छोटी, अल्का, दीनू,


चाचा,नानी, मां, बाप, बेटे-बेटियां पोते पोतियां


औऱ भी न जाने कितने संबंध


हंसते हुए धमाके के बाद


शुरु हुई हकीकतों पर.....



तुषार उप्रेती

2 टिप्‍पणियां:

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' ने कहा…

क्या गुज़रे हो यार... सांस वांस ले रहे हो कि नहीं... ससुर जब भी देखो गुजरने गुजारने की बात ही बतियाते हो... रहने दो हम नहीं कमेंटिया रहे ऐसे गुजरे हुए इंसानों पर ... जा बेनजीर जा .. तुझे याद नहीं करना... खुश... ससुर का नाती... गुजरेला...अबे गुजरने का इतना ही शौक है तो गुजरात काहे नहीं चले जाते... ससुर इहां लाइव इंडिया में गुजरने गुजारने की बात कर रहे हो... यू नो द मीनिंग आफ लाइव... नहीं ना... हम बताइ देते हैं... लाइव माने जिंदगी... ओके... अब मत गुजरना...

बेनामी ने कहा…

My God Tushar !!!!
U really make me wonder with ur accurate use of words n take our imagination at par with reality
Such precise description of termination of common man's day day, his wishes, his relations & finally his unworthy life.......