खूबसूरती की शुरुआत तो अपने शहर से बाहर निकलते ही हाईवे पर हो जाती है। जो गाड़ी शहर में खांस खांस कर चलती है वो भी हाईवे पर अपनी जवानी जीना जानती है। हमने भी एक्सीलेटर पर पांव टिका दिया और एक शहर से भाग कर दूसरे शहर में मुंह छिपाने पहुंच गये। इस बार कैथल (हरियाणा),चंड़ीगढ़,होते हुए गाड़ी को सीधे ब्रेक लगा शिमला में। हां हरियाणा में मां के पांव छुए तो चंड़ीगढ़ की सड़कों पर खेलते हुए शिमला जा पहुंचे। लफंटर तो हम चारों हैं ही। ऊपर से थोड़े लडाकू भी। रास्ते भर छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे की मां-बहन एक होती रही। कभी आगे की सीट से कैसेट उछल कर बैक सीट वाले यार की खोपड़ी का मुआयना करती हुई बच निकली। तो कभी कोई दोस्त बीच रास्ते में वापस लौट जाने पर अड़ गया। दोस्त हैं साले। दो सुट्टे ज्यादा लगवाए। दो दारु की घुंट लगवाई। बंदे मस्त हो गये। लेकिन ये सफर हमें काफी कुछ सीखा गया। सबसे पहला सबक जो हमने हाईवे पर सीखा वो ये था कि दोस्ती यारी में अल्फाज़ों से नहीं खेलना चाहिए। अल्फाज़ जो ज़ुबां से फिसल कर कई बार भीतर तक कुरेद जाते हैं। हमें भी अल्फाज़ों ने सारे रास्ते जख़्मी करे रखा। काफी मुश्किलों के बाद लबों से निकलकर भागे अल्फाज़ों को दारु के नशे में भीगोकर सूखने ड़ालना पड़ा। वापसी में याद रहा तो सिर्फ इतना ही की अल्फाज़ अब पीछा नहीं कर रहे हैं। हाईवे पर गिरकर किसी मर्दाना ट्रक के नीचे आकर अपनी जान गवां चुके हैं। शायद यही दोस्ती है।और अधिक विस्तार पाने को
और मैं झुकाता हूं अपने आप को
तुम्हारे होठों पर समूची पृथ्वी को चूमने।
































