जम कर पिक्चरें बनाएंगें..सुधीर मिश्रा
















सुधीर मिश्रा मुंबईया फिल्म इंडस्ट्री का वो नाम हैं जिसकी काबिलियत को
काफी देर पहचाना गया 'जाने भी दो यारो' से लेकर इस 'रात की सुबह नहीं' और 'धारावी' से लेकर 'हज़ारों ख्वाइशें ऐसी' , 'चमेली' , 'खोया खोया चांद' तक उन्होंने बहुत कम फिल्मों मे काफी कुछ कह दिया है। दिल्ली में पिछले दिनों एक फिल्म फेस्टिवल के दौरान उनसे गलती से मुलाकात हो गई और यकीन मानिए गलती से काफी कुछ सिखने को मिल गया।


मैं- आप यहां कैसे?
सुधीर मिश्रा- बस कुछ दोस्तों ने बुला लिया तो हम आ गये। वैसे भी जहां-जहां सिनेमा का जमघट होता है, वहां हम पहुंच ही जाते हैं।




मैं- किस तरह का सिनेमा पसंद है आपको?
सुधीर मिश्रा- देखिए सिनेमा, सिनेमा होता है। अच्छा बुरा नहीं। कई लोगों की मेहनत छुपी होती है ,उसके पीछे। वैसे ईरान वाले अच्छा काम कर रहे हैं।






मैं- यानी आप भी माजिद मजिदी और मौहसिन मखमलबाफ के फैन हैं।



सुधीर मिश्रा-देखिये मुझे लगता है कि लोगों को अब कुछ दूसरे फिल्मकारों की फिल्में भी देखनी चाहिए। जहां तक इन दोनों फिल्मकारों का सवाल है। मैंने इनकी ज्यादा फिल्में नहीं देखी हैं।






मैं- पिछले दिनों एक फिल्म देखी नाम था 'जाने भी दो यारो' उसमें एक नाम पढ़ा सुधीर मिश्रा।वहां से आज इस मकाम पर पहुंच कर खुद में कितने बदलाव महसूस करते हैं?( जाने भी दो यारो का स्क्रीन प्ले सुधीर मिश्रा ने लिखा है)
सुधीर मिश्रा- बदल तो मैं गया हूं। पिछले बीस सालों से भी ज्यादा समय से इंडस्ट्री में हूं। बीच में 80 और 90 के दशक में कुछ खराब किस्म के लोगों का कब्ज़ा हो गया इस इंडस्ट्री पर। अब हालात थोड़े ठीक हैं। नए लोग काफी आ रहे हैं। हम भी हैं। खुदा ने चाहा तो आने वाले दस-बीस सालों तक जम कर पिक्चरें बनाएंगें।



मैं- आपकी नई फिल्म आने वाली है,'खोया खोया चांद' उसके बारे में कुछ बताएं?
सुधीर मिश्रा- खोया खोया चांद मे कहानी है इस फिल्म इंडस्ट्री की। फिल्म बनकर तैयार है। इसलिए ज्यादा तो नहीं बताऊंगा। लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि एक खास समय को कैमरे से फिल्माना आसान काम नहीं है।






मैं- ट्रैफिक सिग्नल में आप मुंबईया भाई के किरदार में दिखाई दिये थे। अब कब हम आपको स्क्रीन पर देखेंगे?

सुधीर मिश्रा- मधुर तो अपना दोस्त है। उसने कहा इस किरदार को करो तो मैंने कर लिया। वैसे मैं इससे पहले हज़ारों ख्वाइशें ऐसी में कुछ पल के लिए नजर आया था। गौर से देखिएगा, शायद खोया खोया चांद में भी नज़र आ जाऊं। जब कोई जूनियर कलाकार नहीं आता तब डॉयरेक्टर होने के नाते उस किरदार को जीना पड़ता है।



तुषार उप्रेती




कोई टिप्पणी नहीं: