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लेकिन अब भला इस कमबख़्त नज़र से कौन सी खबर कहां छिपी है। जो अब छिपेगी। इसलिय़े हमारी भी नज़र पड़ गई एक ऐसे कार्टून पर जो हमें नहीं देखना चाहिए था। कार्टून कुछ ऐसा था कि ब्लू-लाईन बस लोगों को उनके घरों में घुस-घुस कर रौंद रही है और साथ में caption लिखा हुआ है….Still Searching for more victims….अपने तो हलक में निवाला ही अटक गया। रोज़ सुबह ब्लू लाईन हादसों की खबरें पड़ना आम बात थी। लेकिन इस एक अदद कैप्शन को पढ़ कर ऐसा लगा जैसा ब्लू लाईन मेरी कॉलोनी में घुस कर मेरा पता पूछ रही है। वैसे भी ब्लू लाईन को अगर सामने से बेतरतीबी से आते हुए आपने देखा हो तो उस पर अदृश्य अक्षरों मे लिखा पाया होगा। रौंद दूंगी। ठीक वैसे ही अदृश्य अक्षर जो हमारी सरकार के मुंह पर लिखे होते हैं जिन्हें पढ़ने में हमे पूरे पांच साल लग जाते हैं। खैर गलती अपनी भी नहीं। पढ़ने-लिखने का शौक कभी था भी नहीं। और सरकार की मिड़ डे मिल योजना तो पहले ही फेल हो चुकी है। इसलिए लालच भी नहीं रहा।
घबराइये नहीं बात अगर ब्लू लाईन की है तो हम उसी की बात करेंगे। मुझे याद है दिल्ली में ये बसें लाल रंग के साथ शुरु की गई थी और काफी हादसों के बाद ये फैसला लिया गया कि इसका रंग अशुभ है इसलिये इसे लाल से नीला कर दिया जाये तो हादसे कम हो जाएंगे। भई सरकार है लाजिक से नहीं समर्थन से चलती है। बच्चों को न्यूटन लॉ भले ही आज तक न समझा पाई हो लेकिन ये जरुर समझा देगी कि बस का रंग लाल से नीला कर देने से हादसे कम हो जाते हैं। खुद के मुंह में कालिख पुतने से तो अच्छा है कि बस पर नया रंग पोत दो। अभी भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। अब सरकार डीटीसी के भरोसे चलेगी।
-तुषार उप्रेती
1 टिप्पणी:
jabardast likha bhai
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