ज़िंदगी की धूप में झुलस गए हम
अब हमें इक किनारा ढूंढना होगा
उलझ गई है ज़िंदगी हमारी
सपना क्या है और सच कहां होगा ?
एक उम्मीद थी दिल में
'अपना' भी कोई 'अपना' होगा
कब तलक यूं ही राह तकेंगे हम उनकी
उनका भी तो कोई अपना होगा।
ख़ामोश ज़िंदगी, वक़्त की रफ़्तार
कौन अपना, कौन बेगाना होगा ?
बेवजह बह निकले भावनाओं के दरिया में
अब भंवर से बाहर निकलना होगा ।
सोच लिया है अब हमने,
एक भी आंसू ना बहाएंगे
जहां क़तरा-क़तरा आंसू के कर्ज़ चुकाएं
ज़िंदगी का किनारा वहां हम ढूंढ निकालेंगे...
- एंजेला अनिमा तिर्की
1 टिप्पणी:
hey Angela gr8 job!!!
continue....
All d Best!!!!
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