चूड़ियां...

कोयल कूकती है बहारों में कहीं
रूह भी जाग उठती है मज़ारों से कहीं
नैनों का तब आता है मौसम
बातें होती है इशारों में कहीं

और पापा की बेटी हो जाती है पराई
चूड़ियां खनकती है बाज़ारों में कहीं

वो शख़्स जो होए निसार तुम पर
होता है एक वो हज़ारों में कहीं...


-पुनीत भारद्वाज

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

a girl's feelings described sowell by a boy??!!
can't even imagjne a boy cud understand these things so well??!!
great job Puneet!!